पद :
ਨਾਤੀ ਧੋਤੀ ਸੰਬਹੀ, ਸੁਤੀ ਆਇ ਨਚਿੰਦੁ॥
ਫਰੀਦਾ, ਰਹੀ ਸੁ ਬੇੜੀ ਹਿੰਙੁ ਦੀ, ਗਈ ਕਥੂਰੀ ਗੰਧੁ॥
हिंदी में :
नाति धोति संभही , सुति ऐ नचिन्द।।
फरीदा, रही सु बेड़ी हिंञ दी, गई कथूरी गंध।।
शब्दार्थ : नाति धोति - स्नान किया , संभही - तैयार हुई , सुति - सोई, नचिन्द - निश्चिंत , हिंञ - दुर्गंध , बेड़ी -लिपटी हुई , कथूरी -कस्तूरी , गंध - खुशबू....
व्याख्या :
जीव रूपी स्त्री ने प्रातः काल स्नान किया, सजी संवरी और उसके बाद अपने परमात्मा रूपी पति के इंतजार में निश्चिंत होकर सो गई ; परंतु उसमें अभी भी दुर्गंध के रूप में कर्ता भाव (अहंकार) शेष है इसी के कारण उसकी कस्तूरी रूपी सुगंध चली है।
बाबा फरीद कह रहे हैं हमारा कर्ता भाव ही हमारा अहंकार है , यही हमारी एकमात्र दुर्गंध है जो जो जीव रूपी स्त्री को परमात्मा रूपी पति से मिलने से रोकती है ; यदि कर्ता भाव रूपी दुर्गंध शेष है तो स्नान और सजने संवरने से पवित्रता नहीं आएगी , कर्ता भाव के कारण दान धर्म जैसे कार्य भी हमारा अहंकार बन जायेंगे वहीं अगर कर्ता भाव चला गया तो हमसे जो भी होगा वही श्रेष्ठ और दिव्य बन जाएगा।