पीड़ा से बचने के लिए वे आनंद से चूक जातें हैं ; मृत्यु से बचने के लिए वे जीवन से चूक जातें हैं ।
यह जानने के लिये कि मृत्यु क्या है, एक ऐसे मन की आवश्यकता होती है जिसमें कोई भय न हो।
हम पूछने लगते हैं, "जीवन का प्रयोजन क्या है?” चूंकि हमारा जीवन अत्यंत खोखला, छिछला और निरर्थक है, हम सोचते हैं कि हमारे पास कोई न कोई आदर्श होना चाहिये जिसके लिये हम जियें ; यह सोच बिल्कुल बेमानी है।
यह जानने के लिये कि मृत्यु क्या है, एक ऐसे मन की आवश्यकता होती है जिसमें कोई भय न हो।
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जो मन वास्तव में धार्मिक है, वास्तव में समाजहितैषी है, सृजनशील है, उसे सर्वथा व पूर्णतया भय की इस समस्या का अंत करना होगा, इसे समझना होगा।
क्या आप जानते हैं कि मरना क्या है? आपने अनेक मौतें देखी होंगी। आपने किसी को श्मशान की ओर ले जाते हुए देखा होगा जहां उसे राख या खाक कर दिया जाता है। आपने मृत्यु देखी है। अधिकतर लोग इससे भयभीत रहते हैं।
मृत्यु तो ऐसी होती है जैसे वह पुष्प मर जाये या वह लता अपनी तमाम मॉर्निंग ग्लोरी के साथ मर जाये। वह लता उसी सौंदर्य तथा सौम्यता के साथ मर जाती है – बिना किसी पश्चात्ताप के।
जे. कृष्णमूर्ति