अशोक युद्ध पर गया था। अल्पबुद्धि आदमी नहीं था। कलिंग के युद्ध पर लड़ा। एक लाख आदमी मारे गए।
अशोक के पहले भी सम्राट लड़े हैं, बाद में भी लड़ते रहे हैं, सदा लड़ते रहेंगे। लेकिन जो अशोक को दिखाई पड़ा, वह पहले के सम्राटों को भी कभी दिखाई नहीं पड़ा, बाद के सम्राटों को भी कभी दिखाई नहीं पड़ा। अशोक कलिंग के युद्ध से वापस लौटा, जीतकर लौटा था, लेकिन उदास लौटा।
जीतकर दुनिया में बहुत कम लोग हैं, जो उदास लौटते हैं। जीतकर तो आदमी प्रसन्न होकर लौटता है, अल्पबुद्धि का लक्षण है वह। जब कोई जीतकर प्रसन्न होकर लौटे, तो समझना कि वह अल्पबुद्धि है। और जब कोई हारकर प्रसन्न लौट आए, तो समझना कि वह अल्पबुद्धि नहीं है। जीतकर कोई उदास लौटे, तो समझना कि वह अल्पबुद्धि नहीं है। और जीतकर कोई हंसता हुआ लौटे, तो समझना कि वह अल्पबुद्धि है।
अशोक उदास लौट आया। उसे नाम ही उसके माता-पिता ने अशोक इसलिए दिया था कि वह कभी उदास नहीं होता था; सदा प्रफुल्लित था, चियरफुल था। उसे नाम ही इसलिए दिया था कि वह सदा आनंदित और प्रफुल्लित रहता था। लेकिन इतने बड़े राज्य को जीतकर लौटा है, कलिंग की विजय करके लौटा है, और उदास लौटा आया है! चिंता फैल गई है। उसके मित्रों ने पूछा, इतने उदास हो जीतकर! हार जाते तो क्या होता? स्वभावतः, अल्पबुद्धि के लिए यह सवाल उठा होगा। जीतकर इतने उदास हो, हार जाते तो क्या होता!
अशोक ने कहा, युद्ध अब असंभव है, एक अनुभव काफी सिद्ध हुआ। अब नहीं युद्ध कर सकूंगा, अब नहीं जीतने जा सकूंगा। क्योंकि कितनी कामना की थी कि कलिंग को जीत लूंगा, तो इतना आनंद मिलेगा। लेकिन कलिंग हाथ में आ गया, आनंद तो हाथ में नहीं आया। हालांकि मेरा मन फिर धोखा दे रहा है कि अभी और भी जीतने को जगह पड़ी है, उनको भी जीत लो। लेकिन इस मन की अब दुबारा नहीं मानूंगा। मानकर देख लिया एक बार; एक लाख आदमियों की लाशें बिछा दीं। सिर्फ खून बहा; हाथ में खून के दाग लगे। करुण चीत्कारें सुनाई पड़ीं; रोना; और न मालूम कितने घरों के दीए बुझ गए। और इस मन ने मुझे कहा था, आनंद मिलेगा; वह मैं भीतर खोज रहा हूं, वह मुझे कहीं मिला नहीं। लाखों लोग मर गए, लाखों परिवार उजड़ गए, और जिस सुख के लिए इस मन ने मुझे कहा था, उसकी रेखा भी मुझे दिखाई नहीं पड़ती। युद्ध समाप्त हो गया; मेरे लिए अब कोई युद्ध नहीं है।
और उसी दिन से अशोक ने भिक्षु की तरह रहना शुरू कर दिया। उसने कहा कि जब युद्ध मेरे लिए नहीं है, तो अब सम्राट होने का कोई अर्थ नहीं रहा। वह तो युद्ध के साथ जुड़ा हुआ भाव था--सम्राट होने का।
एच.जी.वेल्स ने विश्व इतिहास में लिखा है कि दुनिया में बहुत सम्राट हुए, लेकिन अशोक जैसा चमकता हुआ तारा विश्व के इतिहास में दूसरा नहीं है। कारण है उसका: महाबुद्धि है। और उसके महाबुद्धि होने की बात क्या है? राज क्या है? राज यह है कि युद्ध के एक अनुभव ने उसे मन का पूरा रहस्य समझा दिया।
गीता दर्शन