कर्म प्रधान विश्व रचि राखा । जो जस करहि सो तस फल चाखा ॥
गीध अधम खग आमिष भोगी। गति दीन्ही जो जाचत जोगी ॥
ये संसार प्रभु ने कर्म की प्रधानता करके रचा है जो जैसा करता है उसे वैसा ही प्राप्त होता है।
जटायु गीध है (पक्षीयों में अधम योनि का है) और प्रकृति के अनुसार वो आमिष भोगी था (मुर्दा खाने वाला) ! परंतु उसने अपनी सामर्थ्य के अनुसार श्री सीता का अपहरण करके जाते हुए रावण को रोकने का भरसक प्रयास किया।
मात्र इतने से सेवा क्रिया से उसने श्री राम की गोद में अपना सर रखकर उनका मुख कमल देखते हुए प्राण छोड़े, जिस लक्ष्य को पाने के लिए योगी सालो साल तपस्या करते हैं ( के मृत्यु के वक़्त उनका ध्यान श्री हरि मे लगे) उस स्तर को यह पक्षी आसानी से पा गया।