वयसि गते कः कामविकारः
शुष्के नीरे कः कासारः ।
क्षीणे वित्ते कः परिवारः
ज्ञाते तत्त्वे कः संसारः ॥१०॥
आयु बीत जाने के बाद काम-भाव नहीं रहता, पानी सूख जाने पर तालाब नहीं रहता, धन चले जाने पर परिवार नहीं रहता और तत्त्वज्ञान होने के बाद संसार नहीं रहता ॥१०॥
vyasi gate kah kamavikarah
suske nire kah kasarah I
ksine vitte kah parivarah
jnate tattve kah samsarah II 10 II
When age (youthfulness) has passed, where is lust and its play? When water is evaporated, where is the lake? When the wealth is reduced, where is the retinue? When the Truth is realised, where is the bonding with the outside world?
भज गोविन्दम् | आदि शंकराचार्य