तितली या इंसान


 

तितली या इंसान ✏️

च्वांगत्सु चीन में हुआ, एक फकीर था। लोगों ने उसे हंसते ही देखा था, कभी उदास नहीं देखा था। एक दिन सुबह उठा और उदास बैठ गया झोपड़े के बाहर! उसके मित्र आये, उसके प्रियजन आये और पूछने लगे, आपको कभी उदास नहीं देखा। चाहे आकाश में कितनी ही घनघोर अंधेरी छायी हो और चाहे जीवन पर कितने ही दुखदायी बादल छाये हों, आपके होठों पर सदा मुस्कुराहट देखी है। आज आप उदास क्यों हैं? चिंतित क्यों हैं?

च्वांगत्सु कहने लगा, आज सचमुच एक ऐसी उलझन में पड़ गया हूं, जिसका कोई हल मुझे नहीं सूझता।

लोगों ने कहा, हम तो अपनी सब समस्याएं लेकर आपके पास आते हैं और सभी समस्याओं के समाधान हो जाते हैं। आपको भी कोई समस्या आ गयी! क्या है यह समस्या?

च्वांगत्सु ने कहा, बताऊंगा जरूर, लेकिन तुम भी हल न कर सकोगे। और मैं सोचता हूं कि शायद अब इस पूरे जीवन, वह हल नहीं हो सकेगी!

रात मैंने एक सपना देखा। उस सपने में मैंने देखा कि मैं एक बगीचे में तितली हो गया हूं और फूलों-फूलों पर उड़ता फिर रहा हूं।

लोगों ने कहा, इसमें ऐसी कौन सी बड़ी समस्या है? आदमी सपने में कुछ भी हो सकता है।

च्वांगत्सु ने कहा, मामला यही होता तो ठीक था। लेकिन जब मैं जागा तो मेरे मन में एक प्रश्न पैदा हो गया कि अगर च्वांगत्सु नाम का आदमी सपने में तितली हो सकता है तो कहीं ऐसा तो नहीं है कि तितली सो गयी हो और सपना देखती हो कि च्वांगत्सु हो गयी! मैं सुबह से परेशान हूं। अगर आदमी सपने में तितली हो सकता है तो तितली भी सपने में आदमी हो सकती है। और अब मैं तय नहीं कर पा रहा हूं कि मैं तितली हूं, जो सपना देख रही है आदमी होने का या कि मैं आदमी हूं, जिसने सपना देखा तितली होने का! और अब यह कौन तय करेगा? मैं बहुत मुश्किल में पड़ गया हूं।

🔸🔸🔸

शायद यह कभी तय नहीं हो सकेगा। च्वांगत्सु ठीक कहता है, जो हम बाहर देखते हैं, वह भी क्या एक खुली आंख का स्वप्न नहीं है? क्योंकि आंख बंद होते ही वह मिट जाता है और खो जाता है और विलीन हो जाता है। आंख बंद होते ही हम किसी दूसरी दुनिया में हो जाते हैं। और आंख खोलकर भी जो हम देखते हैं, उसका मूल्य सपने से ज्यादा मालूम नहीं होता।

आपने जिंदगी जी ली है--किसी ने पंद्रह वर्ष, किसी ने चालीस वर्ष,किसी ने पचास वर्ष। अगर आप लौटकर पीछे की तरफ देखें कि उन पचास वर्षों में जो भी हुआ था, वह सच में हुआ था या एक स्वप्न में हुआ था? तो क्या फर्क मालूम पड़ेगा? पीछे लौटकर देखने पर क्या फर्क मालूम पड़ेगा? जो भी था-- जो सम्मान मिला था, जो अपमान मिला था-- वह एक सपने में मिला था या सत्य में मिला था?

मरते क्षण आदमी को क्या फर्क मालूम पड़ता है? जो जिंदगी उसने जी थी, वह एक कहानी थी या जो उसने सपने में देखी थी, सच में ही वह जिंदगी में घटी थी।

इस जमीन पर कितने लोग रह चुके हैं हमसे पहले! हम जहां बैठे हैं, उसके कण-कण में न-मालूम कितने लोगों की मिट्टी समायी है, न मालूम कितने लोगों की राख है। पूरी जमीन एक बड़ा श्मशान है, जिसमें न जाने कितने अरबों-अरबों लोग रहे हैं और मिट चुके हैं। आज उनके होने और न होने से क्या फर्क पड़ता है? वे जब रहे होंगे,तब उन्हें जिंदगी मालूम पड़ी होगी कि बहुत सच्ची है। अब न जिंदगी रही उनकी, न वे रहे आज, सब मिट्टी में खो गये हैं।

आज हम जिंदा बैठे हैं, कल हम भी खो जायेंगे। आज से हजार वर्ष बाद हमारी राख पर लोगों के पैर चलेंगे। तो जो जिंदगी आखिर में राख हो जाती हो, उस जिंदगी के सच होने का कितना अर्थ है? जो जिंदगी अंततः खो जाती हो, उस जिंदगी का कितना मूल्य है?

नेति नेति (सत्य की खोज)

Oops! उफ्फ
It seems there is something wrong with your internet connection. Please connect to the internet and start browsing again. Loading please wait a second.